ग़ालिब एक ऐसा नाम जिसके बिना हर शायरी हर ग़ज़ल की महफ़िल अधूरी है ..या यूँ कहूँ की किसी के अकेलेपन का साथी तो किसी की मोहब्बत है ग़ालिब ...आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक कोन जीता है तेरे जुल्फ के सर होने तक या दिल ए नादान तुझे हुआ क्या है या उनकी कोई भी ग़ज़ल क्यूँ ना सुनी जाये यूँ लगता है की वो ना सिर्फ ग़ालिब की ज़िन्दगी या उनका हाल -ए- दिल बल्कि हमारी ज़िन्दगी हमारे ख्यालों को भी बयाँ करती हैं ग़ालिब की शायरी उनकी ज़िन्दगी और उनकी बेशकीमती ग़ज़लों से मेरी मुलाक़ात गुलजार साहब की नज्मे पढने और जगजीत जी की ग़ज़लों को सुनने के दौरान हुई .यह दोनों ना सिर्फ मेरे लिए बल्कि ना जाने कितने और लोग होंगे जिनको ग़ालिब को जानने और पढने का चस्का इनकी वज़ह से लगा होगा ..गुलजार का सीरियल मिर्ज़ा ग़ालिब और जगजीत सिंह की वो आवाज़ दोनों की ही उस शानदार कोशिश ने ना जाने कितने लोगो को उनका दीवाना बना दिया ..1988 में डीडी नेशनल पर आया मिर्ज़ा ग़ालिब सीरियल जिसके लिए गुलज़ार भी अपने आप को खुशकिस्मत मानते है की यह अच्छा काम उनके हाथों हुआ ..आखिर जिसमे जगजीत और चित्रा जी की दिल को छु लेने वाली आवाज़ और नसीरुद्दीन शाह की बेमिसाल एक्टिंग हो वो काम तो बेहतरीन होना ही था ..लगा ही नहीं की सीरियल है यूँ लगा की मिर्ज़ा ग़ालिब हकीकत में परदे पे उतर आये