कभी यादों में आऊँ कभी ख्वाबों में आऊँ तेरी पलकों के साये में आकर झिलमिलाऊं..यह अल्फाज़ पढ़ते ही ३ किरदारों की कहानी याद आती है या फिर सूनने के शोकीन लोगो को भागती ज़िन्दगी में थोडा सुकून महसूस होता है अभिजीत का गाया यह गाना उनके शानदार एल्बम तेरे बिना से है और उन्होंने गाया भी कमाल है पर यहाँ बात उनके गाये उस गाने या एल्बम की नहीं है बल्कि एक नयी कहानी नये किरदारों की है जैसा की आजकल काफी गानों के रीमेक बन रहे है जिनमें पहली वाली बात तो नहीं रहती पर कुछ गानों में एक ईमानदार कोशिश नज़र आती है ..और यह कोशिश अरिजीत भी कर चुके है गुलों में रंग भरे ग़ज़ल को एक अलग अंदाज़ में पेश करके ..और कभी यादों में आऊँ के नए रूप में भी उन्होंने अपनी आवाज़ दी है पर वो ना के बराबर है
कुछ लफ़्ज़ों से कह पाऊँ कुछ आँखों से जता पाऊँ ख्याल बस इतना सा है मोहब्बत से ज़िन्दगी जी पाऊँ
Saturday 28 January 2017
Wednesday 18 January 2017
साँसों की माला पे सिमरूं पी का नाम .........मीरा का कृष्ण के लिए अटूट प्रेम
मीरा बाई एक ऐसा नाम जिसको सुनते ही कृष्ण अपने आप जुबां पर आ जाते है और ऐसा आखिर हो भी क्यूँ ना प्रेम में भेद कंहा रहता है और ऐसी प्रेम की पराकाष्ठा ...जिसको बयां करने को शब्द कभी भी पर्याप्त हो ही नहीं सकते ..प्रेम में वो पागलपन जो खुद को भुला दे ..आखिर जिसका नाम सुन जिनके भजन सुन हम एक असीम प्रेम और भक्ति की अनुभूति करते है तो वास्तविकता में उसके मायने क्या रहे होंगे ..मीरा बाई का कृष्ण के प्रति असीम प्रेम और भक्ति तो बचपन से ही थी .. और इस बारे में हर किसी ने काफी सुना पढ़ा भी होगा |
पर यंहा जो लिखने का विषय है वो है उनका कृष्ण के लिए लिखा भजन "साँसों की माला पे सिमरूं पी का नाम "
मीरा के भजनों में पूरी उनके एहसासों की नदियाँ है जिनका मिलन कृष्ण रूपी समुन्द्र में होता है |
यह भजन किसी ने भजन के रूप में गाया तो किसी ने क़व्वाली के रूप में लेकिन इसका जो रूप है वो दोनों में ही एक जैसा महसूस होता है ...इसको क़व्वाली के रूप में सबसे पहले नुसरत फतेह अली खान साहब ने गाया था |जब वो 1979 में भारत आये थे ..और यह काफी हिट हुआ ..उसके बाद कई लाइव शो और रियलिटी शो में इसको गाया गया है ..और अगर उनमें बेहतरीन कलाकारो की बात की जाए तो पूजा गायतोंडे,
पर यंहा जो लिखने का विषय है वो है उनका कृष्ण के लिए लिखा भजन "साँसों की माला पे सिमरूं पी का नाम "
मीरा के भजनों में पूरी उनके एहसासों की नदियाँ है जिनका मिलन कृष्ण रूपी समुन्द्र में होता है |
यह भजन किसी ने भजन के रूप में गाया तो किसी ने क़व्वाली के रूप में लेकिन इसका जो रूप है वो दोनों में ही एक जैसा महसूस होता है ...इसको क़व्वाली के रूप में सबसे पहले नुसरत फतेह अली खान साहब ने गाया था |जब वो 1979 में भारत आये थे ..और यह काफी हिट हुआ ..उसके बाद कई लाइव शो और रियलिटी शो में इसको गाया गया है ..और अगर उनमें बेहतरीन कलाकारो की बात की जाए तो पूजा गायतोंडे,
Monday 9 January 2017
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त(path) बिखरना है उसे.....दिल को क्यू जिद है की आगोश में भरना है उसे ...
तू समझता है फक्त रस्मे मोहब्बत की है..... मुद्दतों दिल ने तेरी दिल से इबादत की है जी हाँ यह अल्फाज़ बिल्कुल सटीक बैठते है जानी मानी ग़ज़ल गायिका डॉ.राधिका चोपड़ा पर जिन्होंने इंडियन क्लासिकल की बड़े दिल से इबादत की है और उसको अपने ही एक अलग अंदाज़ में अपनी ग़ज़लों से पेश किया है वो जम्मू से है और उनकी संगीत की शिक्षा बड़ी जल्दी ही शुरू कर दी गयी थी | और दिलचस्प बात यह है की उनको तब शुरू में सीखना बिल्कुल पसंद नहीं था लेकिन गाना तब भी अच्छा लगता था ..लेकिन धीरे -धीरे उनका लगाव संगीत से बढ़ता गया और आज वो एक मखमली आवाज़ की मालिक है उनकी ग़ज़ल गायिकी में एक अलग ही रंग नज़र आता है | सदा अम्बालवी की लिखी ग़ज़ल "वो तो खुश्बू है हर एक सम्त बिखरना है उसे" काफी लोकप्रिय हुई .. और भी गायकों ने इसको गाया है मगर इसकी रूह को महसूस किया जा सकता है तो वो आवाज़ है राधिका जी की जिन्होंने इसे बहुत कमाल गाया है ...
"वो तो खुश्बू है हर एक सम्त(path)बिखरना है उसे
दिल को क्यू जिद है की आगोश में भरना है उसे
क्यों सदा पहने वो तेरा ही पसंदीदा लिबास
कुछ तो मौसम के मुताबिक़ भी संवरना है उसे
उसको गुलचीं(a florist) की निगाहों से बचाए मौला
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