Thursday, 24 November 2016

रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का .........एक अलग अंदाज़ में

ऐसा कभी- कभी  होता है की आप खोज कुछ और रहे होते है और आपको मिल कुछ और जाता है लेकिन जो मिलता है वो भी अगर आपको उतना ही खुश कर दे तो ऐसी ही एक ग़ज़ल की खोज के दौरान मेरे साथ हुआ
जो ग़ज़ल खोज रहा था वो तो मिली नहीं पर जो दूसरी मिली वो थी " रफ्ता रफ्ता वो  मेरी हस्ती का सामां हो गए "
rafta
एक शानदार ग़ज़ल जिसे हर उस शख्स ने सुना होगा जो ग़ज़ल से प्यार करता है  जनाब  मेहदी हसन की यह दिलकश ग़ज़ल आखिर भूल कोन सकता है लेकिन जो ग़ज़ल मुझे मिली वो फीमेल  वर्जन में .......