Wednesday 18 January 2017

साँसों की माला पे सिमरूं पी का नाम .........मीरा का कृष्ण के लिए अटूट प्रेम

मीरा बाई  एक ऐसा नाम जिसको सुनते ही कृष्ण  अपने आप जुबां पर आ जाते है और ऐसा आखिर हो भी क्यूँ  ना प्रेम में भेद कंहा रहता है और ऐसी प्रेम की पराकाष्ठा ...जिसको  बयां करने को शब्द कभी भी पर्याप्त हो ही नहीं सकते ..प्रेम में वो पागलपन जो खुद को भुला दे ..आखिर जिसका नाम सुन जिनके भजन सुन हम एक असीम प्रेम और भक्ति की अनुभूति  करते है तो वास्तविकता में उसके मायने क्या रहे होंगे ..मीरा बाई का कृष्ण के प्रति असीम प्रेम और भक्ति  तो बचपन  से ही थी .. और इस बारे में हर किसी ने काफी  सुना पढ़ा भी होगा |
पर यंहा जो लिखने का विषय है वो है उनका कृष्ण के लिए  लिखा भजन "साँसों की माला पे सिमरूं पी का नाम "
मीरा के भजनों में पूरी उनके एहसासों की नदियाँ  है जिनका मिलन कृष्ण रूपी समुन्द्र  में होता है |
यह भजन किसी ने भजन के रूप में गाया तो किसी ने क़व्वाली के रूप में  लेकिन इसका जो रूप है वो दोनों में ही एक जैसा महसूस होता है ...इसको क़व्वाली के रूप में सबसे पहले नुसरत फतेह अली खान साहब ने गाया था |जब वो 1979  में भारत आये थे ..और यह काफी हिट हुआ ..उसके बाद कई लाइव शो और रियलिटी शो में इसको गाया गया है ..और अगर उनमें बेहतरीन कलाकारो की बात की जाए तो पूजा गायतोंडे,
 

रफ़ाक़त अली खान जैसे कलाकारों ने इसे अपने सुरों में सजा कर लोगो की रूह को छुआ है|
 और इनके बारे में बात करे तो पूजा गायतोंडे  जो की ग़ज़ल गायिका है और रफाकत अली खान जो की बॉलीवुड में भी गाने गा चुके है और शाम चौरसिया घराना  से है जो की वैसे किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है उन लोगो के लिए जो सूफियाना और क्लासिकल म्यूजिक से जुड़े है आवाज़ में उनकी ऐसी रूहानियत है जो ना चाहते हुए भी 
आपके दिल में उतर जाती है.................................................

आ पिया इन नैनन में ,जो पलक ढांप तोहे लूं
ना में देखू गैर को , ना तोहे देखन दूं
साँसों की माला पे सिमरूं में पी का नाम 
अपने मन की में जानू और पी के मन की राम 
जिन नयन में पिया बसे 
उनमें कोन समाय
साँसों की माला में सिमरूं में पी का नाम 
वो चातर है कामनी वो है सुन्दर नार 
जिस पगली ने कर लिया साजन का मन राम 
जब से राधा श्याम के नैन हुए है चार ,श्याम बने है राधिका और राधा बन गयी श्याम 
साँसों की माला पे सिमरूं में पी का नाम 
अपने मन की में जानू और पी के मन की राम 
प्रेम के रंग में ऐसी डूबी बन गया एक ही रूप 
प्रेम की माला जपते -जपते आप बनी में श्याम 
साँसों की माला ............
प्रीतम का कुछ दोष नहीं है वो तो है निर्दोष 
अपने आप से बातें करके हो गयी में बदनाम 
साँसों की माला पे सिमरूं में पी का नाम 
अपने मन की में जानू और पी के मन की राम .....


3 comments:

  1. bahut hi acha lekh

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  2. बहुत ही सुन्दर ... भावपूर्ण ....

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  3. पसंद करने के लिए शुक्रिया

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