Thursday 29 December 2016

साहित्य का मेला ..जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) और नज्म उलझी हुई सी है सीने में .....

टेक वर्ल्ड जैसे अपने पाँव अब सब जगह पसारने लगा है वैसे -वैसे  किताबों की जगह स्टोरेज में ज्यादा  और अलमारी में कम होती जा रही है | फिर भी साहित्य के चाहने वाले अब भी  किताबों के पन्ने पलटना ज्यादा पसंद करते है और साहित्य को जब एक मंच मिले तो साहित्य प्रेमियों के लिए तो यह एक खजाने की तरह है  ऐसा ही साहित्य का मेला हर बार जयपुर में लगता है हर एक कोने से आये लेखक , शायर और साहित्य प्रेमियों का हुजूम उमड़ पड़ता है इस दौरान और परम्पारगत तरीके से होता मेहमानों का स्वागत 
और फिर होता है सवालों का सिलसिला हर एक साहित्य प्रेमी को अपने पसंदीदा लेखक से मिलने का इंतज़ार हमेशा रहता है और उनको करीब से जानने का सवाल जवाब करने का मौका इससे बेहतर कंहा मिल सकता है |
ये मेरे लिए पहला अनुभव रहा किसी साहित्य मेले में शामिल होने का जाने माने लेखको को सुनना उनसे  सीखना एक शानदार अनुभव  रहता ही है |यूँ तो JLF में काफी मशहूर  लेखको ने सिरकत की जिनमे भारतीय लेखको में अमिश तिरपाठी ,जावेद अख्तर साहब ,और  कई  नामी लेखक रहे
पर मुझे सबसे ज्यादा इंतज़ार रहा तो गुलज़ार साहब का  आखिर उनको लाइव सुनकर   एक अलग ही एहसास होता है |

आखिर उनका सेशन भी आ ही गया  और उनका अंदाज़ किसी भी बात को कहने का यूँ लगता है जैसे वो भी उनकी कोई नज़्म हो .. और यह सेशन था उनके सहयोगी दोस्त pavan k verma के साथ जिसका शीर्षक "नज़्म उलझी  हुई सी है सिने में " था |  उसके बाद शुरू हुआ उनकी नज़्म और नेचर से इंसानों के जुड़ाव  को बयां करती उनकी रचनाये और उनकी तारीफ में बजती तालियाँ उतनी भीड़ बाकि के किसी भी सेशन में देखने को नहीं मिली जितनी उस दिन वंहा हुई  "पिछली बार आया था तो ..इसी पहाड़ के  ..निचे खड़ा था मुझे कहा था इसने 

तुम लोगो के कद क्यों इतने छोटे रह जाते है "..."कह देते हो कहने को तुम लेकिन अपने बड़ो की इज्जत करते नहीं तुम इसलिए तुम लोगो के कद इतने छोटे रह जाते है " ग्रीन पोयम्स  की इन रचानो के जरिये गुलज़ार साहब ने  सोचने और तालियाँ बजाने पे मजबूर कर दिया |  यह खुद आप यंहा विडियो में देख सकते है
आखिर जब सेशन  ख़त्म  हुआ तो वंहा  बैठा  हर कोई साहित्यप्रेमी उन्हें  और सुनना चाह रहा था |आखिर आवाज़ का जादू ही ऐसा था | कुछ और मिनट दिए गए लेकिन आखिर वक़्त तो बीत ही जाता है उसके बाद ऑटोग्राफ देने का सिलसिला शुरू होता है जिसमें वक़्त तो लग जाता है लेकिन वो शायद आप महसूस ना कर पाए अगर आप गुलजार साहब के चाहने वाले है मैंने सोचा था एक दिन पहले की... यंहा जो बुक स्टोर लगा है कल यंही से एक बुक लेकर ऑटोग्राफ ले लिया जाएगा |  लेकिन जब सुबह जब वंहा पहुंचा तो ग्रीन पोयम्स की २ किताबों के अलावा एक भी गुलज़ार साहब की बुक नहीं बची जो की एक दिन पहले २०० से २५० तो रही होंगी .. आखिर लम्बी लाइन में लगने के बाद गुलज़ार साहब का ऑटोग्राफ भी मिला और उनके करीब जाने का भी यह वाकई शानदार पल था |
यह साहित्य के मेले के ५ दिन   हर किसी के लिए ऐसा पल ले ही आते है जो आप कभी नहीं भुला पाते ..आने वाले साल २०१७ में फिर jan. 19 se 23 फिर JLF का आयोजन हो रहा है और मुझे इसका बेसब्री से इंतज़ार है ...अगर आप भी साहित्य में रूचि रखते है है तो यह शानदार मौका है  ....और इसी बहाने जयपुर दर्शन का आईडिया भी बुरा नहीं ....

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    काश कि समय होता

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  2. आपको पोस्ट पसंद आई कविता जी उसके लिए शुक्रिया हाँ यह समय के खेल ही अजीब है फिर भी कभी फुर्सत के दिनों में मौका मिल जाए तो बात बन जाती है ...

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  3. बहुत अच्छा लेख

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    1. आपको लेख पसंद आया सावन कुमार जी उसके लिए शुक्रिया

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  4. पसंदीदा साहित्यकारों से मिलना सौभाग्य की बात है।
    बहुत खूब।

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    1. जी बिल्कुल सही कहा सुधा जी यह वाकई ना भूलने वाला पल होता है ..पसंदगी के लिए धन्यवाद

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