Tuesday 5 July 2016

मासूमियत

 ज़िंदगी शायद यूँही गुजरती रहती है
कूदते फांदते दिन तो निकल जाता है

रात की मुश्किल है बिना रोटी के नींद नहीं देती
कभी इस करवट कभी उस करवट कट जाती है रात फिर
सुबह रौशनी लेके आती है खोई हुई तेरी मेरी आँखों में










उम्मीद की चमक दे जाती है

सहारे उसके फिर दिन गुज़रता है
मासूमियत आँखों से झलकती रहती है दिन भर
और रात को बारिश की तरह बरसती रहती हैं
ज़िन्दगी शायद यूँही गुज़रती रहती है

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